जैन धर्म की प्रासंगिकता को सिद्ध करने का अवसर
के .जे सोमैया जैन अध्ययन केंद्र का शानदार आयोजन
राष्ट्रीय - अंतरराष्ट्रीय विद्द्वान हुए शामिल
“भविष्य में जैन दर्शन की भूमिका” (The Role of Jainism in Future) विषय पर सोमैया विद्याविहार के अंतर्गत के .जे सोमैया जैन अध्ययन केंद्र आयोजित इस शानदार आयोजन के लिए बधाई. इस तरह के कार्यक्रमों से जैन धर्म को विस्तार से व सरल भाषा में जानने का अवसर प्राप्त होगा और युवा वर्ग को जोड़ा जा सकेगा. निश्चित ही इस तरह की संगोष्ठी हर माह होने के प्रयत्न होने चाहिए.
शांति वल्लभ टाइम्स
मुंबई :- विश्व में कोरोना महामारी का प्रकोप जारी हैं. इस महामारी के चलते लोग मानने को मजबूर है की जो आज कहा जा रहा है उसे जैन दर्शन शुरू से कहते आया हैं ,और कर रहा हैं. उपरोक्त विचार भारत व विश्व में बसे जैन विद्द्वानो ने किया. सोमैया विद्याविहार के अंतर्गत के .जे सोमैया जैन अध्ययन केंद्र द्वारा इस वेबिनार का आयोजन किया गया था. वेबिनार में “भविष्य में जैन दर्शन की भूमिका” (The Role of Jainism in Future) इस पर विस्तार से चर्चा हुई. सभी प्रबुद्ध वक्ताओं ने जिनके द्वारा भविष्य में आनेवाली समस्याएं तथा जैन दर्शन द्वारा प्राप्त समाधान का विवरण किया.
कार्यक्रम की शुरुवात कु. दृष्टी जैन ने मंगलाचरण से की. संगोष्ठी की अध्यक्षता जैन दर्शन विभाग, श्री लालबहादूर शास्त्री अंतरराष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ, नई दिल्ली के प्रोफेसर वीरसागर जैन ने की.विद्यापीठ के उपकुलपति ने संगोष्ठी के लिए शुभकामनायें दी व सोमैया के धर्म स्टडीज के अंतर्गत आनेवाले जैन सेंटर तथा जैन दर्शन की मानवता को होनेवाली उपयोगिता की सराहना की.
संगोष्ठी में सर्व प्रथम नोर्थ टेक्सास विद्यापीठ के डॉ. पंकज जैन ने जैन दर्शन के मुख्य स्तंभ – अहिंसा, अपरिग्रह तथा अनेकान्तवाद इन सामाजिक उन्नति के तथ्यों का विस्तृत वर्णन किया.उन्होंने आचार्य शांति सूरीश्वरजी द्वारा बताये गए वस्तुओं की उपभोगता को कम करने पर सभी का ध्यान आकर्षित किया.डॉ जैन ने बताया की यह, पृथ्वी केवल मनुष्य के रहने का स्थान नही है, प्राकृतिक तत्व सभी जीवों की उपयोगीता के लिए है.इसके बाद उन्होंने अमेरिका में स्थित जैन विद्द्वानो द्वारा किये जानेवाले प्रमुख कार्यों की जानकारी दी | उन्होंने बताया अमेरिकामें 100 से भी अधिक जैन प्राध्यापक शैक्षणिक कार्य की प्रगति में अपना योगदान दे रहे हैं, जिसका प्रमाण जैन साहित्यों का मुद्रिकरण जो जैन इ लायब्ररी (E -Liabrary )वेबसाईट पर उपलब्ध है.उन्होंने बताया कीअमेरिका में आज कई संस्थाओं द्वारा शाकाहार,अल्प उपभोगता आदि विषयों पर कार्य किया जा रहा है जिसका ज्ञान जैन दर्शनके आचार्यों द्वारा कई वर्षों पहले ही दिया गया है.
श्री लालबहादूर शास्त्री आंतर्राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ, नई दिल्ली प्रो. अनेकान्त कुमार जैन द्वारा “कोविड 19 के बाद वैश्विक समस्या तथा जैन दर्शन की प्रासंगिकता” को अधिक मार्मिकता से स्पष्ट किया.उन्होंने कहा कि जैन दर्शन इस महामारी के अवसर पर हमारे लिए आशा का स्रोत है .हम अपनी प्रासंगिकता को सिद्ध कर सकते हैं. पूरा विश्व जैन धर्म की और आशाभरी नजरों से देख रहा हैं. उनके अनुसार बाहरी विकास के लिए आतंरिक विकास अत्यधिक आवश्यक है, जिसके लिए अहिंसा परमोधर्म को अपनाना चाहिए. इसके बिना जीवन की कल्पना नहीं हो सकती. जैन दर्शन आध्यात्मिकता का प्रसार करता है मात्र आधुनिक समाज में क्रियाएं बढती जा रही है और आध्यात्मिकता घटती जा रही है.वे कहते है आध्यात्मिकता से ही क्रियायों की शुद्धि को बरक़रार किया जा सकता है.जैन ने द्व जैन विद्द्वानों तथा जैन दर्शन के विभागों को जैन ग्रंथों में उपलब्ध आयुर्वेदिक शास्त्रों शोध कार्य करने का सुझाव दिया गया.उन्होंने कहा की संसार में रहने की तथा संसार से अलिप्त रहने की शैली सिखाने वाला दर्शन जैन दर्शन है .पुरानी मान्यताओं का पालन करने पर विचार हो सकता हैं. भगवान महावीर के मूल्यों को युवा पीढ़ी समझने का प्रयास कर रही हैं ,इसे हमे उन्हें लोजीकली समझाना होगा.
संगोष्ठी को आगे बढ़ाते हुए अंतरराष्ट्रीय विभाग, प्राकृत अध्ययन तथा संशोधन, चेन्नई के निदेशक डॉ. दिलीप धींग ने “कोरोना कालोपरांत अहिंसक अर्थव्यवस्था की प्रतिष्ठा में जैन समाज की भूमिका इस विषय पर अपने विचार रखे. डॉ. दिलीप ने कहा की जैन धर्म एक वैज्ञानिक धर्म है, जिसके द्वारा शाकाहार की अर्थवयवस्था की शिक्षा दी जाती है | धींग ने कहा की शिक्षा, चिकित्सा और विज्ञान में अहिंसा को केंद्र में रखकर प्रयोग किया जायें | व्यवसायों में होनेवाली हिंसा का भी उन्होंने निषेध किया | उन्होंने कहा भगवान महावीर का तंत्र अहिंसा का तंत्र है, विश्व में स्थायी शांति के लिए अहिंसा की आवश्यकता है. उन्होंने कहा की कुछ लोग स्वार्थ के चलते विरोध करते हैं. पर्यावरण को को नुकसान हो ऐसा कार्य ना करें. गांवों में शाकाहार,नशा विरोधी अभियान जैसे काम कर क्रांतिकारी भूमिका ली जा सकती हैं. हिंसा के लिए शस्त्र एक से बढ़कर एक है मात्र अहिंसा से बढ़कर कुछ नहीं हैं.
देश, विदेश से शामिल हुए इस वेबिनार में स्वानुभाव, इसरो जैनोलोजी विद्द्वान, अहमदाबाद के पंडित सोनू जैन शास्त्री ने “जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में वैश्विक निःशस्त्रीकरण के उपाय” पर वक्तव्य प्रस्तुत किया | उन्होंने कहा की जैन दर्शन वस्तुवादी दर्शन है व्यक्तिवादी नहीं | 2000 वर्ष पूर्व आचार्य समन्तभद्रजी का विशेष उल्लेख करते हुए उन्हीं के शब्दों में कहते है कि, कोई व्यक्ति यदि जैन धर्म से द्वेष रखता है तो द्वेष को दूर रखकर जैन तत्त्वों को जरुर पढ़े क्योंकि इसमें वस्तु की व्यवस्था बताई गयी है, जो हमें हर प्रकार की हिंसा से दूर रखता है इसीलिए इसे सर्वोदय दर्शन भी कहा गया है .शास्त्री ने बताया की हिंसा की वजह से कर्म बंधन बढ़ते जाते है यह कहते हुए कर्म सिद्धांत की भी स्पष्टता की | हमें हिंसक प्राणी के हिंसा का भी हमें अधिकार नहीं है यह कहते हुए शस्त्र के प्रयोग का समाज तथा विश्व में होनेवाले प्रयोग के परिणाम बताये तथा उसे रोका जाये ऐसी आशा व्यक्त की .
जैन विश्वभारती विद्यापीठ, लाडनूं के डॉ. योगेश जैन “कोविड 19 के बाद समस्याएं तथा जैन दर्शन द्वारा उनके समाधान” विषय पर सभी सहभागियों को संबोधित किया.उन्होंने यह संभावना व्यक्त की कि, कोरोना से झुझता हुआ समाज आगे जाकर बेरोजगारी, भुखमरी, तनाव, चोरी, सामाजिक विघटन, आत्महत्या आदि समस्यायों का शिकार हो सकता है | जिसके लिए जैन दर्शन द्वारा, समानता, अहिंसा, अनेकान्तवाद, कर्मफल, भोगोपभोग जैसे सिद्धान्तों की शिक्षा आदि काल से ही दी गई है. उन्होंने कहा जैन दर्शन सभी को समान अवसर प्राप्त कराने से भी अधिक न्याय संगत योग्यता को मान्यता देता है, इसीलिए आज न्याय संगत योग्यताओं पर विचार करने की आवश्यकता है.उन्होंने कहा की आज आत्मरक्षा,अर्थ साधन संस्कार, वाणी संस्कार, भोजन संस्कार, यौन संस्कार तथा वस्त्र संस्कार इन 5 संस्कारों की आवश्यकता है |
जे जी आई विद्यापीठ,बेंगलुरु की डॉ.तृप्ति जैन ने “जैन दर्शन में भोगोपभोग का सिद्धांत” इस विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा की कोविड की समस्या में अतिरिक्त भोग ही एक मुख्य कारण है.उन्होंने कहा मर्यादित अथवा संतुलित जीवन से ही मानव का विकास संभव है, इसलिए अशुभ भोगों को मर्यादित करते जायें. तत्वज्ञान विभाग, मुंबई विद्यापीठ के डॉ. अरिहंत कुमार जैन, “अगली पीढ़ी के लिए हमारे समाज की जिम्मेदारियां ” विषय को स्पष्ट करते हुए कहा की आधुनिक समस्या यह विश्व में आनेवाले परिवर्तन का प्रकर्ती द्वारा सुचन है | इससे निपटने के लिए हरेक को जिम्मेदार बन सर्वप्रथम एकजुट होने की आवश्यकता है.जैन समाज हमेशा से ही पाठशाला में बच्चों को आध्यात्म, शाकाहार तथा अहिंसा की शिक्षा दी जाती है जिससे आज की समस्या से खुद को बचाया जा सकता है.डॉ. अरिहंत ने अंत में गांधीजी की बात दोहराते हुए कहा हर धर्म में ज्ञान का भंडार होता है पर जैन दर्शन विश्व के लिए धर्म हो सकता है |
अंतिम वक्ता के रूप में जिनेश शेठ तत्वज्ञान विभाग, मुंबई विद्यापीठ ने “भुत, वर्तमान और भविष्य में – स्व के लिए जैन दर्शन” विषय पर अपना व्यक्तत्व प्रस्तुत किया.उन्होंने कहा जैनत्व की शुरुवात सम्यक्त्व से होती है.मुख्यतः मैं कौन, मैं कौन नहीं, मेरे लिए क्या अच्छा और मेरे लिए क्या बुरा इन 4 प्रश्नों का उत्तर खोजना ही मनुष्य जीवन का लक्ष्य होता है जिसका समाधान जैन दर्शन करता है.शेठ ने कहा जिन के अनुयायियों को ही जैन कहा जा सकता है. उन्होंने कहा की अपना हित प्रशस्त करने के लिए जैन धर्म के विचारों को अच्छे से अपने जीवन में अपनाया जाए.
सभी शोधपत्रों के उपरांत अपने अध्यक्षीय उदबोधन में प्रो. वीर सागर जैन ने सभी को लाभान्वित किया | उन्होंने कहा सोमैया जैन सेंटर द्वारा सर्वप्रथम इस तरह के आयोजन की वजह से जैन सेंटर प्रशंसा तथा बधाई का पात्र है | उन्होंने प्रत्येक वक्ता की प्रस्तुति को सराहा तथा संयोजकों को इस तरह के वेबिनार का आयोजन प्रति माह करने का सुझाव दिया.उनके प्रेरणादायी शब्दों ने सभी वक्तागण तथा सहभागियों का उत्साह बढ़ाया. वेबिनार का सफल संचालन के .जे सोमैया जैन अध्ययन केंद्र के निदेशक डॉ. शुद्धात्म प्रकाश जैन ने किया.उन्होंने बताया की वेबीनार में लगभग 400 लोगों ने भाग लिया जबकि रजिस्ट्रेशन 1069 हुए.जैन ने कहा निश्चित इस तरह के आयोजन हेतु भविष्य में प्रयास किया जायेगा.